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Dhyan




ध्यान कहाँ से शुरू होता है और कहाँ तक ले जाता है?

ध्यान की शुरूवात मन के एकाग्रता से होता है|एकाग्रता मानव को मानव चित्त को लेकर जाता है| जिस क्षण मानव मन और चित्त एकमय होते है उस क्षण धारणा की उत्त्पति होती है|चित्त जिस भी क्षण अंतर मन से जुड़ाव कर लेता है उसी क्षण ध्यनत्व मे मानव आ जाता है| ध्यनत्व ही मानाव को ध्यान मे लेकर जाता है| ध्यनत्व ह्रिद्य के सूक्ष्मतम अवास्ता मे जागृत होता है| यही ब्रह्मांडीय प्रेम से संबंध बनता है| ध्यान मार्ग मे मातृत्व के पूर्ण भाव जागते है| यही प्रेम मानव को ध्यान मे ला सकता है अन्यथा नहीं| यही ध्यान की शुरुवात है|

अंतर चित्त ही गुरु है यहीं क्षण मन को अवगत कराता है और उसी क्षण शरीर और मन को मार्ग दर्शित करने के लिए शरीरी गुरु मानव के सामने प्रगट होता है| यही क्षण मानव मन मे से शिष्य का जन्म होता है| गुरु और शिष्य का संबंध इतना प्यारा होता है की शिष्य के अंतर मन की प्रार्थना गुरु चित्त से जुड़ती है और शिष्य के अंतरचित्त मे गुरुचित्त वीराजती है और शिष्य के शरीर, मन और चित्त को पूर्ण रूप से शुद्ध और निर्मल बना देती है| शुद्ध और निर्मलता मानव चित्त को मैं, मेरे और मेरे अपने के दायरे से उपर उठाती है और ब्रह्मांडीय प्रेम की वर्षा से ओत प्रोत कर देती है| यही शिष्य का अपने तत्व से संबंध स्थापित करती है यही गुरुतत्व है| गुरुतत्व ही ज्ञान का सार है जो मानव को देह साक्षात्कार से मानसिक साक्षात्कार तक, मानसिक साक्षात्कार से चित्त साक्षात्कार तक, चित्त साक्षात्कार से आत्म साक्षात्कार तक ले जाता है|

चित्त साक्षात्कार से मानस चित्त मे समर्पण भाव की जागृति होती है| यही समर्पण गुरुकृपा के अवसर प्रधान करता है| जो शिष्य के चित्त का उत्थान के मार्ग पर ले जाती है और ध्यान समर्पित हो जाता है| यही समर्पित ध्यान शिष्य को और ऊँचा उठता है और ऊँचा उठता है और परम चैतन्य के दिव्य तेज में विलय कर देता है| यही क्षण महत्वपूर्ण है जहाँ पे चित्त अपनी ही विशालता का आनंद  लेने का मार्ग खोल देता है| साक्षी रूप मे मन सबको क्षमा कर देता है और विराटता का अंग प्रत्यंग बना देता है| निर्मुक्त निर्विचार शून्यता के मार्ग ही ध्यान का अंतिम स्तर है| #मैत्रेय रुद्राभयानंद

Where does Meditation Begin and where Does it expand to?

Meditation is not a right word for Dhyān. Dhyān at very basic levels can be called as Meditation, for at basic levels it begins with concentration. It is this concentration that allows one to connect with the Consciousness. Post this level Dhyān and Meditation part ways, for Dhyān goes deeper allowing the Connection to the Consciousness to go deep and connect to the Inner Consciousness. Inner Consciousness leads one to connect to the Heart Consciousness, it is the moment of the merging here that Element of Dhyān emerges. It is this Element of Dhyān that allows one to gain the depths of Dhyān. Dhyān emerges from the subtlest element of Heart Consciousness. This is called the Universal expanse of Love, depth and mergence. It is this Universe Expanse of Love that is known and felt in depth as Motherly Love. It is this love that allows one to go into Dhyān. This is the beginning of Dhyān.

Inner Consciousness is the Guru within, it is this connection of Body, Mind that allows the External Guru to emerge in front of the one who is connected. It is this connection that allows the emergence of Shishya (Disciple). The relationship of Guru and Disciple is so beautiful, deep and loving that the prayers emerging from the depths of inner conscious of disciple allows one to connect to the Guru Consciousness. It is this Guru consciousness that resides within the  inner consciousness of the disciple and cleanses and purifies the Body, Mind and Spirit of the disciple. This cleansing and purification allows the disciple to rise beyond the realm of I, Me, Myself and bathes him the grace and glory of Universal Cosmic Love. This Universal Cosmic Love establishes the Disciple at core levels of Truth connecting to Guru-tatva.

Guru Tatva is the expanse of knowledge and wisdom that allows one to expand from the Body-Realisation to Conscious Realisation, Conscious Realisation to Inner Conscious (Self) Realisation, Inner Conscious (Self) Realisation to Spirit Realisation.

Inner Conscious realisation allows one to gain the expanse of Sharanagati. This Sharanagati allows one to gain the grace and blessing of the Guru. This level of Sharanagatim Dhyān allows the Disciple to expand and rise to connect and merge with the Supreme Blissful Illuminated Consciousness. This is the most important moment in life wherein the Universal Consciousness ecstatically dances in the infinite expanse of Bliss. This is a beautiful opening of the Eternal Gateway of Truth. The expanse is so beautiful that it forgives everyone and merges as part of the universal expanse itself. The end expanse of Dhyān is a state of Dynamic Void, Thoughtlessness and Liberation.

ध्यान कहाँ से शुरू होता है और कहाँ तक ले जाता है?

ध्यान की शुरूवात मन के एकाग्रता से होता है|एकाग्रता मानव को मानव चित्त को लेकर जाता है| जिस क्षण मानव मन और चित्त एकमय होते है उस क्षण धारणा की उत्त्पति होती है|चित्त जिस भी क्षण अंतर मन से जुड़ाव कर लेता है उसी क्षण ध्यनत्व मे मानव आ जाता है| ध्यनत्व ही मानाव को ध्यान मे लेकर जाता है| ध्यनत्व ह्रिद्य के सूक्ष्मतम अवास्ता मे जागृत होता है| यही ब्रह्मांडीय प्रेम से संबंध बनता है| ध्यान मार्ग मे मातृत्व के पूर्ण भाव जागते है| यही प्रेम मानव को ध्यान मे ला सकता है अन्यथा नहीं| यही ध्यान की शुरुवात है|

अंतर चित्त ही गुरु है यहीं क्षण मन को अवगत कराता है और उसी क्षण शरीर और मन को मार्ग दर्शित करने के लिए शरीरी गुरु मानव के सामने प्रगट होता है| यही क्षण मानव मन मे से शिष्य का जन्म होता है| गुरु और शिष्य का संबंध इतना प्यारा होता है की शिष्य के अंतर मन की प्रार्थना गुरु चित्त से जुड़ती है और शिष्य के अंतरचित्त मे गुरुचित्त वीराजती है और शिष्य के शरीर, मन और चित्त को पूर्ण रूप से शुद्ध और निर्मल बना देती है| शुद्ध और निर्मलता मानव चित्त को मैं, मेरे और मेरे अपने के दायरे से उपर उठाती है और ब्रह्मांडीय प्रेम की वर्षा से ओत प्रोत कर देती है| यही शिष्य का अपने तत्व से संबंध स्थापित करती है यही गुरुतत्व है| गुरुतत्व ही ज्ञान का सार है जो मानव को देह साक्षात्कार से मानसिक साक्षात्कार तक, मानसिक साक्षात्कार से चित्त साक्षात्कार तक, चित्त साक्षात्कार से आत्म साक्षात्कार तक ले जाता है|

चित्त साक्षात्कार से मानस चित्त मे समर्पण भाव की जागृति होती है| यही समर्पण गुरुकृपा के अवसर प्रधान करता है| जो शिष्य के चित्त का उत्थान के मार्ग पर ले जाती है और ध्यान समर्पित हो जाता है| यही समर्पित ध्यान शिष्य को और ऊँचा उठता है और ऊँचा उठता है और परम चैतन्य के दिव्य तेज में विलय कर देता है| यही क्षण महत्वपूर्ण है जहाँ पे चित्त अपनी ही विशालता का आनंद  लेने का मार्ग खोल देता है| साक्षी रूप मे मन सबको क्षमा कर देता है और विराटता का अंग प्रत्यंग बना देता है| निर्मुक्त निर्विचार शून्यता के मार्ग ही ध्यान का अंतिम स्तर है| #मैत्रेय रुद्राभयानंद

Soul Searchers intends to raise the consciousness of people and to help create a turning point on this planet—a world where people are in tune with their inner-selves, living healthy and creative lives and are no longer swayed by religious dogma or politics.  The purpose is to bring the state of righteousness (dharma) back again in current state of political turmoil and selfishly motivated people.  We believe the truth can be known and realised through guided and workable ways. Thousands have benefited from the process of initiation and share them with your friends and family and together we’ll touch and transform lives. 

# Soulschennai

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