top of page

मेरा कोई शिष्य नही|


दीक्षा देता हूँ फिर भी मेरा कोई शिष्य नही|

दीक्षा मैने लिया था परंपरा के मार्ग मे | गुरु जिसने मार्ग दिखाया वह किसी परंपरा से ना था| परंपरा का उनसे कुछ लेना देना नही था| परंपरा का दौर उनके ज्ञान से मनवो ने शुरू किया| अरूपिय अशारीरी गुरु को कहाँ मैं देखूँ |अपरंपरा गत उस पूर्ण जागृत चित्त अवस्था जो हर कण की उत्पति मे  है, चराचर मे उनके बिना कुछ नही, चराचर मे भी वो कुछ नही| दीक्षा मे गुरु की उत्पति होती है मगर शिष्य कही नही होता|

दीक्षा किसी मानव को शिष्य नही बनता मगर जब दीक्षा का प्रारूप प्रकट होता है तब वह अपने इष्ट की ओर देखते ही रहता है बिना विचलित हुये| बिना मत के कोई पाप और पुण्य के दायरे मे बँधे हुए, धर्म के पूर्णतया रूप मे अरूप अवस्था मे दीक्षा के जागृत अवस्था मे अंतर चित्त की सूक्ष्म स्तर अवस्था, किसी अवस्था के साथ बँधा हुआ नही है| यही अवस्था दीक्षा का मन और चित्त के कई पर्तो को खोल देती है| यही अवस्था मानव के मन को शिष्य रूपी बनाती है और उसी क्षण दीक्षा गुरु  सत्गुरु बन जाता है| यही वो  क्षण है जहाँ जन्म अवस्था मे ही जीव का पुनर्जन्म होता है| जन्म मे प्राप्त हुआ शरीर ही रह जाता है| मन, चित्त, और अंतर चित्त पूरी तरह बदल जाता है| सब कुछ बदल जाता है| सिर्फ़ शरीर ही बचता है| शरीर सिर्फ़ एक खोल है, अंतर दर्शन और अंतर मुख जागृत अवस्था मे| जीवन मे सब बदल जाता है हमेशा के लिए| जो बचता है वो है एक जीवित स्वरूप| यही साधना की एक अत्यंत महत्वपूर्णा घटना है| प्रपंच मे दीक्षा के कई स्तर है| दीक्षा एक मार्ग को दर्शाती है, जो मानव को शिष्य रूप मे रूपान्तरण करता है| यही रूपान्तरण शिष्य को गुरु के अंतर चित्त से जोड़ता है | यही शिष्य को सत मार्ग पर ले जाता है क्योंकि दीक्षा साधना के मार्ग मे वो प्रकाश पुंज है जो जीवन के महित्व को समय काल अवस्था से परे हो कर जोड़ती है| जब तक शिष्य पारंपरिक दायरे मे बन्ध कर शिक्षा को ग्रहण करता है वह सिर्फ़ अंधकार मे ही रास्ते को तलाश को बन्ध्कर तलाशता रहता है|

गुरु होते हुए भी बिन गुरु के, शिष्य होते हुए भी बिना शिष्य हुए, गुरु ‘सर्वअचरव्यपिन’ और शिष्य ‘संविशतिलीन’ अवस्था मे  सर्वाचार ऐकात्म्य स्वरूप मे स्थिर हो कर प्रकाशमान होकर उद्द्योतकारिन् अवस्था स्थापित होते है| शिष्य के रूपांतरण स्थिरता की ओर होने पर वही शिष्य सतगुरु मार्ग का अनुसरण करते हुए ‘आचार्य’ बन जाता है| चैतन्य गुरु का, गुरुमत मार्ग को आचार्य प्रकाशमान करता है| #मैत्रेय रुद्राभयानंद

Soul Searchers intends to raise the consciousness of people and to help create a turning point on this planet—a world where people are in tune with their inner-selves, living healthy and creative lives and are no longer swayed by religious dogma or politics.  The purpose is to bring the state of righteousness (dharma) back again in current state of political turmoil and selfishly motivated people.  We believe the truth can be known and realized through guided and workable ways. Thousands have benefited from the process of initiation and share them with your friends and family and together we’ll touch and transform lives.

# Soulschennai


Recent Posts

See All

Homage to Ancestors

Namaskar to everyone, perhaps, its yearly time for paying homage to ancestors. This is one of the oldest tradition that has been followed...

Comentários


bottom of page